शिक्षा का कार्य व्यक्तित्व का संपूर्ण तथा सर्वांगीण विकास करना है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक आदि पहलुओं के विकास से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सकता हैं। इन पहलुओं के विकास के लिए ही पाठ्यसह्गामी क्रियाएँ शिक्षा का अनिवार्य एवं अभिन्न अंग है।
संस्कार शाला महोत्सव
संस्कारों से समग्रता की ओर एक कदम
संगीत
ह्रदय की हर धड़कन को झंकृत करने वाली शब्द सरगम
खेलकूद
शरीर, मन, मस्तिष्क को स्फूर्ति एवं ताजगी देने वाले
हस्त कौशल
स्वर्णिम भारतीय संस्कृति की ओर एक कदम
नृत्य कला
अभिव्यक्तियों की लावण्यमयी लहरदार प्रस्तुति
पाक कला
आहार से औषधि की ओर,
स्वाद से स्वास्थ्य की ओर।
योग
आरोग्यवान बनाने की प्राकृतिक चिकित्सा
प्रकृति प्रेम
आंतरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास
शैक्षणिक भ्रमण
प्रत्यक्ष अवलोकन एवं निरीक्षण से अनुभवजन्य ज्ञान की अनुभूति
गुरु चरण वंदना
गुरुभक्ति से ओतप्रोत गुरुचरणों में नमन
उत्सव और यादगार पल
उर्जा और उल्लास के पल